ऑप्शन ट्रेडिंग में फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग शामिल रहती हैं। लेकिन एक ऐसा व्यक्ति जो ऑप्शन ट्रेडिंग के बारें में शुरुवाती जानकारी हांसिल कर रहा हैं उसके लिए फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर करना मुश्किल काम हो सकता हैं।
हम सब जानते हैं कि ऑप्शन ट्रेडिंग शेयर मार्केट से कम समय में मोटा पैसा कमाने का बहुत ही अच्छा तरीका हैं। लेकिन ऑप्शन ट्रेडिंग को सही से सीखना आवश्यक हैं, नहीं तो आपको बहुत बड़ा नुकसान हो सकता हैं।
तो आज इस पोस्ट में हम फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर और Future and Option Trading in Hindi को विस्तार से समझेंगे। लेकिन सबसे पहले हम फ्यूचर और ऑप्शन को अलग से समझ लेते हैं इससे आपको इनमें अंतर आसानी से समझ में आ जाएगा। इसलिए अपने सभी सवालों का जवाब जानने के लिए इस पोस्ट के अंत तक जरूर बनें रहिये।
Future Trading in Hindi
फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट एक डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट होता हैं। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के दो पक्षकार होते हैं एक बायर और दूसरा सेलर। यह दोनों पक्षकार किसी आगामी तारीख पर एक निर्धारित मूल्य पर किसी अंडरलाइंग एसेट को ख़रीदने या बेचने का वादा करते हैं।
इस अंडरलाइंग एसेट में शेयर, इंडेक्स, करेंसी, सोना, चांदी, गेहूं, कपास, पेट्रोलियम आदि शामिल हो सकते हैं।
फ्यूचर्स एक डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट होता हैं जिसके चार मुख्य तत्व होते है –
- लेनदेन की तारीख
- मूल्य
- खरीदार और
- विक्रेता
फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में बायर प्राइस बढ़ने की आशा में कॉन्ट्रैक्ट करता हैं जबकि सेलर प्राइस गिरने के लिए कॉन्ट्रैक्ट करता हैं।
इस प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट में एक्सपायरी डेट पर बायर और सेलर अंडरलाइंग एसेट को खरीदने और बेचने के लिए बाध्य होते हैं। मतलब की ख़रीददार को ट्रेड सेटल करने के लिए एसेट को खरीदना होता हैं जबकि सेलर को बेचना अनिवार्य होता है।
इस तरह फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में किसी एक पार्टी को फायदा तो दूसरी पार्टी को नुकसान होता हैं। इसलिए इसमें रिस्क की मात्रा काफी अधिक होती हैं।
अगर बिलकुल आसान भाषा में समझें तो फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट एक ऐसा डेरीवेटिव समझौता होता हैं जिसमें एक फ्यूचर डेट पर किसी अंडरलाइंग एसेट को खरीदने या बेचने का वादा किया जाता हैं। यह कॉन्ट्रैक्ट ऑप्शनल नहीं होता बल्कि इसे पूरा करना ही होता हैं।
Future Trading Example in Hindi
चलिए फ्यूचर ट्रेडिंग को एक आसान उदाहरण की मदद से समझते हैं –
मान लीजिये कि आप एक निवेशक हैं और आपको लगता है कि XYZ कंपनी के स्टॉक का मूल्य बढ़ने वाला हैं। लेकिन आप इस समय शेयर खरीदना नहीं चाहते हैं तो आप एक XYZ कंपनी के शेयर्स के फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट को खरीद सकते हैं।
- कंपनी: XYZ लिमिटेड
- फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की मूल्य: ₹100 प्रति शेयर
- फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की मात्रा: 1000 स्टॉक्स (इसका मतलब है कि एक कॉन्ट्रैक्ट में XYZ कंपनी के 1000 स्टॉक्स होंगे)
अगर आपने XYZ कंपनी के स्टॉक्स का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट ख़रीदा हैं और शेयर का मूल्य भी बढ़ता है, तो आपको लाभ होगा।
लेकिन दूसरी ओर यदि मूल्य गिरता है, तो आपको नुकसान हो सकता है।
ये भी पढ़ें:
Option Trading in Hindi
ऑप्शन ट्रेडिंग एक ऐसा कांट्रैक्ट होता हैं जो बायर और सेलर को कुछ प्रीमियम अमाउंट के भुगतान के बाद एक निश्चित तारीख पर किसी स्ट्राइक प्राइस पर अंडरलाइंग एसेट को खरीदने या बेचने का अधिकार देता हैं।
ऑप्शन ट्रेडिंग में कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शंस के द्वारा ट्रेड किया जाता है। इसमें कॉन्ट्रैक्ट को एक्सेक्यूट करने का अधिकार होता हैं लेकिन बाध्यता (obligation) नहीं होती।
यदि आपको लग रहा हैं कि किसी शेयर की प्राइस बढ़ने या घटने वाली हैं तो ऑप्शन ट्रेडिंग के द्वारा आप केवल एक छोटा सा प्रीमियम (Option Premium) देकर उस शेयर को पहले से ही खरीद या बेच सकते हैं। केवल प्रीमियम का भुगतान करने के कारण आप इसमें ज्यादा शेयर खरीद और बेच सकते हैं। इस तरह ऑप्शन ट्रेडिंग में पूरा खेल ऑप्शन प्रीमियम का होता हैं।
अगर आसान भाषा में समझे तो ऑप्शन ट्रेडिंग में शेयर खरीदने या बेचने के लिए आपको शेयर्स की पूरी राशि का भुगतान नहीं करना पड़ता। बल्कि इसमें आपको एक छोटा सा प्रीमियम देना होता हैं।
अगर ऑप्शन ट्रेडिंग में आपकी रिसर्च के मुताबिक स्टॉक मूव नहीं करता है तो भी आपको पूरे अमाउंट का नुकसान नहीं होगा। बल्कि आपने जो प्रीमियम का भुगतान किया था आपको सिर्फ उसी पैसे का नुकसान होगा।
Option Trading Example in Hindi
मान लेते हैं कि आप ABC कंपनी के 1,000 शेयर ₹5,000 का प्रीमियम देकर एक महीने के बाद का ₹100 प्रति शेयर में खरीदने का ऑप्शन खरीद लेते हैं।
- इसमें आपको एक महीने के बाद ABC कंपनी के 1,000 शेयर ₹100 प्रति शेयर में ख़रीदने का हक़ रहेगा, चाहें फिर उस शेयर की प्राइस कुछ भी क्यों न हो।
मान लेते हैं कि उस कंपनी का शेयर एक महीने के बाद ₹80 पर आ गया, तो आपके पास विकल्प (Option) रहेगा की आप उस शेयर को न खरीदे। इसमें आपका नुकसान ₹5,000 का ही होगा, जो की आपने प्रीमियम के रूप में भुगतान किया था।
लेकिन दूसरी ओर यदि उस कंपनी के शेयर की कीमत बढ़कर ₹120 हो जाती हैं। तो इस स्थिति में आप अपना ऑप्शन प्रयोग कर सकते हैं। इसमें आपको ₹120 का शेयर मात्र ₹100 में मिल जाएगा।
वैसे ट्रेडिंग करते समय ऐसा कोई कांसेप्ट नहीं होता। आपका प्रॉफिट और लॉस प्रीमियम के घटने और बढ़ने से तय होता हैं। इसके लिए आप ऑप्शन चैन के बारें में जानकारी हांसिल कर सकते हैं।
फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर (Difference between Future & Option)
फ्यूचर एक ऐसा कॉन्ट्रेक्ट होता है जो धारक को एक निश्चित भविष्य की तारीख पर एक निश्चित मूल्य पर, एक निश्चित अंडरलाइंग एसेट को खरीदने या बेचने का अधिकार देता है। ऑप्शन एक निश्चित तिथि पर एक विशिष्ट मूल्य पर एक निश्चित अंडरलाइंग एसेट को खरीदने या बेचने का अधिकार देता हैं, लेकिन इसमें कोई दायित्व नहीं होता हैं। फ्यूचर्स और ऑप्शन दोनों लगभग समान रूप से काम करते हैं, हालांकि यह कुछ मापदंडों में भिन्न होते हैं।
ऑप्शन और फ्यूचर्स में मुख्य अंतर खरीदार और विक्रेता की बाध्यता का है। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में, समझौते के खरीदार और विक्रेता, दोनों ही लेन-देन को पूरा करने के लिए बाध्य होते हैं। वहीं दूसरी ओर, एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में, कॉन्ट्रैक्ट के बायर को ट्रांसेक्शन करने का अधिकार होता हैं न की बाध्यता।
चलिए फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर को विस्तार से इस टेबल के माध्यम से समझते हैं –
विवरण | फ्यूचर्स | ऑप्शंस |
---|---|---|
प्रतिबद्धता का अंतर | फ्यूचर्स में, आपको एक निश्चित तारीख पर कॉन्ट्रैक्ट का निष्पादन करना होता है। इसमें निर्धारित मूल्य पर शेयर खरीदने या बेचने का प्रतिबंध होता है। | ऑप्शंस में, निष्पादन का कोई प्रतिबंध नहीं होता। आप चाहे तो निष्पादन कर सकते हैं और नहीं भी। |
लेन-देन का अंतर | फ्यूचर्स ट्रेडर्स एक विशिष्ट मूल्य पर शेयर खरीदते हैं और विशिष्ट मूल्य पर बेचने का प्रतिबंध रखते हैं। | ऑप्शंस ट्रेडर्स प्रीमियम चुकाते हैं। |
एडवांस पेमेंट | नहीं होता | प्रीमियम के रूप में चुकाया जाता हैं। |
लाभ और हानि | फ्यूचर्स के माध्यम से ट्रेडिंग करते समय लाभ या हानि किसी भी समय पर हो सकती है, और इसमें असीमित लाभ या हानि की संभावना रहती है। | ऑप्शंस में लाभ या हानि कभी भी प्रीमियम से परे नहीं जाती हैं। |
निष्पादन का अंतर | फ्यूचर्स को भविष्य की किसी एक तारीख पर निष्पादित किया जाता है। | ऑप्शंस को एक्सपायरी डेट तक निष्पादित करने का विकल्प खरीददार के पास होता है। |
जोखिम की मात्रा | तुलनात्मक रूप से अधिक जोखिम होती हैं। | फ्यूचर की तुलना में कम रिस्क होती हैं। |
मार्जिन की आवश्यकता | अधिक | कम |
उम्मीद हैं कि इस टेबल से आपको फ्यूचर एंड ऑप्शन में अंतर समझ में आया होगा।
फ्यूचर्स और ऑप्शंस में समानताएँ
फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर के साथ कुछ समानताएं भी होती हैं। फ्यूचर और ऑप्शन की समानताएं इस प्रकार हैं –
- यह दोनों ही डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट हैं जो की स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड किये जाते हैं।
- फ्यूचर और ऑप्शन दोनों में रोज़ सेटलमेंट होता हैं।
- इन दोनों कॉन्ट्रैक्ट में ही शेयर, करेंसी, कमॉडिटी, बॉन्ड्स आदि में ट्रेडिंग की जा सकती हैं।
- फ्यूचर्स और ऑप्शंस दोनों हेजिंग का एक माध्यम हैं।
इस तरह इन दोनों का अलग-अलग उद्देश्य होने के बावजूद इनमें काफी समानताएं भी हैं।
FAQ’s on Future and Option Trading in Hindi
फ्यूचर और ऑप्शन में क्या मुख्य अंतर है?
फ्यूचर में कोई एडवांस पेमेंट की आवश्यकता नहीं होती जबकि ऑप्शन में प्रीमियम के रूप में अग्रिम भुगतान किया जाता हैं। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को निष्पादित करना आवश्यक हैं जबकि ऑप्शन को नहीं।
फ्यूचर ट्रेडिंग क्या होती है?
फ्यूचर एक डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट रहता हैं। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में दो पक्षकार होते हैं एक क्रेता और दूसरा विक्रेता। यह दोनों पक्षकार किसी फ्यूचर डेट पर एक निर्धारित कीमत पर किसी अंडरलाइंग एसेट को ख़रीदने या बेचने का कॉन्ट्रैक्ट करते हैं।
फ्यूचर्स और ऑप्शन में वित्तीय लेवरेज क्या होता है?
फ्यूचर्स और ऑप्शन में वित्तीय लेवरेज का उपयोग करके अधिक मात्रा में ट्रेड किया जा सकता हैं। मतलब की कम राशि से अधिक शेयर में ट्रेडिंग करना।
फ्यूचर्स और ऑप्शन में ट्रेडिंग करने के लिए कौनसे अकाउंट की आवश्यकता होती है?
फ्यूचर्स और ऑप्शन में ट्रेडिंग करने के लिए आपको डीमैट एंड ट्रेडिंग अकाउंट की जरुरत होती हैं।
फ्यूचर्स और ऑप्शन ट्रेडिंग में कितनी रिस्क होती हैं?
इसमें काफी ज्यादा वोलैटिलिटी होने की वजह से बहुत ज्यादा रिस्क होती हैं।
निष्कर्ष “फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर”
अगर देखा जाएं तो फ्यूचर और ऑप्शन दोनों तरीकें बड़े निवेशकों के लिए रिस्क से बचने के लिए हेजिंग के तरीकें हैं। परन्तु आजकल अधिकतर रिटेल निवेशक भी इसमें बहुत ज्यादा ट्रेड करने लगे हैं।
F&O ट्रेडिंग बहुत ही ज्यादा रिस्की होती हैं इसलिए इसमें सोच-समझकर और सीखने के बाद ही ट्रेडिंग करनी चाहिए।
तो दोस्तों, आज आपने इस पोस्ट में फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर, Future and Option in Hindi को विस्तार से समझा। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो तो इसे सोशल मीडिया अकॉउंटस पर जरूर शेयर कीजियेगा।