स्टॉक मार्केट से पैसा कमाने के दो मुख्य तरीके हैं पहला इन्वेस्टिंग दूसरा ट्रेडिंग। इन्वेस्टिंग में अच्छे और क्वालिटी शेयर खरीदकर लम्बे समय तक होल्ड करके पैसा बनाया जाता हैं। जबकि ट्रेडिंग में शेयर्स को कम अवधि में खरीदकर और बेचकर पैसा बनाया जाता हैं।
आज इस आर्टिकल में हम ट्रेडिंग में ऑप्शन ट्रेडिंग को विस्तार से समझने वाले हैं। आज आपको मैं Option Trading को बिलकुल आसान भाषा में समझाऊंगा जिससे आपके सभी डाउट्स क्लियर हो जाएंगे।
इसमें हम समझेंगे की ऑप्शन ट्रेडिंग क्या हैं, ऑप्शन ट्रेडिंग के प्रकार, ऑप्शन ट्रेडिंग कैसे करें और Call और Put क्या होते हैं। तो बने रहिये इस ऑप्शन ट्रेडिंग के दिलचस्प आर्टिकल में।
Option Trading in Hindi | ऑप्शन ट्रेडिंग क्या होती हैं
जैसा की आपको इसके नाम से ही पता चल रहा हैं इसमें आपको शेयर खरीदने या बेचने का ऑप्शन होता हैं।
ऑप्शन ट्रेडिंग में आपके पास एक निश्चित डेट पर एक निश्चित प्राइस पर शेयर ख़रीदने या बेचने का विकल्प होता हैं। ऑप्शन ट्रेडिंग में ट्रेडर के पास विकल्प होता हैं की वो अपने ऑप्शन को ले या न ले।
अगर आसान भाषा में समझे तो ऑप्शंस एक कॉन्ट्रेक्ट होता है जो एक Underlying Asset से जुड़ा हुआ होता है जैसे की स्टॉक या इंडेक्स। ऑप्शंस कॉन्ट्रेक्ट एक निर्धारित समय अवधि के लिए होते हैं, जो की सप्ताह से लेकर महीनों तक का हो सकता है।
जब आप कोई Option खरीदते हैं, तो आपके पास उस शेयर को ख़रीदने या बेचने का (जैसे भी हो) अधिकार होता है, लेकिन आप इसके लिए बाध्य नहीं होते हैं। यदि आप ऑप्शन की डेट पर अपना ट्रेड एक्सेक्यूट नहीं करते तो इस “ऑप्शन का प्रयोग” करना कहते हैं।
ऑप्शन ट्रेडिंग स्टॉक ट्रेडिंग की तुलना में थोड़ी अधिक कॉन्प्लेक्स होती है। यदि सिक्योरिटी के प्राइस ऊपर जाती है, तो ऑप्शन के द्वारा आप अधिक प्रॉफिट कमा सकते हैं। क्योंकि इसमें आपको ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के लिए पूरा पैसा एक साथ नहीं चुकाना होता बल्कि प्रीमियम ही देना होता है।
साथ ही ऑप्शन ट्रेडिंग में आपका लॉस भी सीमित हो जाता है। यदि सिक्योरिटी की प्राइस कम होती है तो आपके पास अधिकार होता हैं की आप उस सिक्योरिटी को न ख़रीदे, इसे हेजिंग (hedging) कहा जाता है।
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चलिए ऑप्शन ट्रेडिंग को एक आसान उदाहरण से समझते हैं।
मान लीजिये आप किसी कंपनी के 1,000 शेयर ₹5,000 का प्रीमियम देकर 1 महीने के बाद का ₹100 प्रति शेयर में खरीदने का Option लेते हैं।
- अब आपको एक महीने के बाद उस कंपनी के 1,000 शेयर ₹100 प्रति शेयर में ख़रीदने का हक़ होगा, चाहें फिर उस शेयर की प्राइस कुछ भी क्यों न हो।
यदि उस कंपनी का शेयर 1 महीने के बाद ₹80 हो गया हैं तो आपके पास विकल्प (Option) रहेगा की आप उस शेयर को न खरीदे। इस स्तिथि में आपका नुकसान ₹5,000 का ही होगा, जो की आपने प्रीमियम के रूप में दिया था।
लेकिन मान लेते हैं की एक महीने के बाद उस कंपनी के शेयर की कीमत बढ़कर ₹130 हो गई हैं। अब आप प्रॉफिट बनाने के लिए अपना ऑप्शन का प्रयोग कर सकते हैं। इसमें आपको ₹130 का शेयर मात्र ₹100 में मिल जाएगा।
ऑप्शन ट्रेडिंग के प्रकार | Types of Option
आप ऑप्शन ट्रेडिंग किसी भी भी सिक्योरिटी, शेयर, इंडेक्स या ETF में कर सकते हैं। ऑप्शन ट्रेडिंग के प्रकार की बात की जाए तो ये मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं।
- कॉल ऑप्शन (Call Option)
- पुट ऑप्शन (Put Option)
अब आप ये सोच रहे होंगे की ऑप्शन ट्रेडिंग में कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शन क्या होते हैं। देखिये ये दोनों विकल्प ट्रेड करने की रणनीतियों में अलग-अलग प्रकार से प्रयोग किये जाते हैं।
कॉल ऑप्शन (Call Option) | कॉल ऑप्शन क्या होता हैं?
कॉल ऑप्शन में आपके पास अधिकार होता हैं की आप किसी शेयर या सिक्योरिटी को एक निश्चित समय के अंदर एक निर्दिष्ट मूल्य पर खरीद सकते हैं। कॉल ऑप्शन में खरीदना आपका अधिकार होता हैं न की दायित्व। मतलब की आप चाहे तो उस शेयर को ख़रीद सकते हैं या नहीं भी।
लेकिन अब इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए आपको प्रीमियम का भुगतान करना होता हैं जो की आपको वापस नहीं मिलता। ये प्रीमियम ऑप्शन सेलर को प्राप्त होता हैं।
कॉल ऑप्शन का प्रयोग करने की अंतिम तारीख को “Expiry Date” कहा जाता हैं।
अगर आसान भाषा में बाते करें तो कॉल ऑप्शन शेयर मार्केट में बुल मार्केट की आशा में ख़रीदा जाता हैं। जब शेयर की कीमत बढ़ जाती हैं तो कॉल ऑप्शन बायर बहुत मोटा पैसा बना सकता हैं।
पुट ऑप्शन (Put Option) | पुट ऑप्शन क्या होता हैं?
पुट ऑप्शन में धारक को भुगतान किए गए प्रीमियम के बदले समाप्ति तिथि पर या उससे पहले किसी भी समय स्ट्राइक मूल्य पर किसी विशेष संपत्ति या शेयर को बेचने का अधिकार होता है।
चूंकि आप किसी भी समय स्टॉक को बेच सकते हैं, यदि कॉन्ट्रेक्ट की अवधि के दौरान स्टॉक की कीमत गिरती है, तो आप पुट ऑप्शन का इस्तेमाल करके नुकसान से बच सकते हैं। इसलिए जब स्टॉक की कीमत गिरती हैं तो पुट ऑप्शन की वैल्यू अधिक हो जाती हैं।
दूसरी ओर, अगर कॉन्ट्रेक्ट की अवधि के दौरान स्टॉक की कीमत बढ़ जाती है, तो विक्रेता के पास विकल्प होता हैं की वो अपने शेयर नहीं बेचे। ऐसी स्थिति में उसे केवल प्रीमियम राशि का नुकसान होता है। जबकि शेयर की पूरी कीमत का नुकसान नहीं होता है।
इस तरह Put Option बेयर मार्केट के डर से खरीदा जाता हैं। जिसमें स्टॉक की कीमत गिरने पर नुकसान से बचा जा सकता हैं। इसे हेजिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं।
Option Trading कैसे करें ?
ऑप्शन ट्रेडिंग करने के लिए आपके पास एक डीमैट एंड ट्रेडिंग अकाउंट होना जरुरी हैं। जिसमें आपके F&O सेगमेंट एक्टिव होना चाहिए। F&O सेगमेंट की मदद से आप अपने स्टॉक ब्रोकर के प्लेटफार्म के माध्यम से ऑप्शन ट्रेडिंग कर सकते हैं।
इस प्रकार की ट्रेडिंग के लिए आप एक-दो शेयर नहीं खरीद सकते। बल्कि ऑप्शन ट्रेडिंग में आपको एक पूरा लॉट (lot) खरीदना होता हैं। ये लॉट साइज शेयर टू शेयर निर्भर करती हैं। जैसे की 500 शेयर का लॉट, 1000 शेयर का लॉट।
लॉट साइज की जानकारी आपको अपनी शेयर ब्रोकिंग एप्प में मिल जाएगी।
ऑप्शन ट्रेडिंग दो तरह से की जा सकती हैं :
- Option buying करके
- Option Selling करके
ऐसा नहीं की आप कोई वीडियो देखकर या कोई आर्टिकल पढ़कर ऑप्शन ट्रेडिंग सीख जाएंगे। इसमें महारत हांसिल करने के लिए आपको निरंतर सीखना होगा। ट्रेडिंग में अनुभव से बढ़कर कोई चीज नहीं हैं।
Option Trading सम्बंधित टर्म्स
- प्रीमियम (Premium): ये अपफ्रंट पेमेंट होता हैं जो की Buyer द्वारा Seller को ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट ख़रीदने की एवज में दिया जाता है।
- स्ट्राइक प्राइस (Strike Price / Exercise Price): पूर्व-निर्धारित मूल्य जिस पर शेयर या संपत्ति खरीदी या बेची जा सकती है।
- एक्सपायरी डेट (Expiry Date): ये वो तारीख होती हैं जब तक आप अपने ऑप्शन का इस्तेमाल कर सकते हैं।इस डेट के बाद ऑप्शन का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
- स्टॉक सिंबल (Stock Symbol): स्टॉक सिंबल ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट से जुड़े किसी स्टॉक या इंडेक्स की पहचान करने के लिए उपयोग किया जाता है। जैसे की – Nifty 18000 CE
- लॉट साइज (Lot Size): लॉट साइज शेयर की एक निश्चित संख्या बताता हैं जो की ऑप्शन ट्रेडिंग की एक यूनिट होती हैं। प्रत्येक सिक्योरिटी या शेयर के लिए लॉट साइज अलग-अलग हो सकती हैं जो की एक्सचेंज के द्वारा तय किया जाता हैं। जैसे की – रिलायंस के एक यूनिट में 250 शेयर होते हैं।
कॉल ऑप्शन ट्रेड कैसे करें?
स्टॉक मार्किट में कॉल ऑप्शन (Call Option) ख़रीदने का मतलब है कि आप किसी विशेष स्टॉक या संपत्ति को खरीदने के लिए एक कॉन्ट्रेक्ट खरीद रहे हैं जो की एक निश्चित समय के लिए होगा। कॉल ऑप्शन खरीदते समय आपको निम्न बातें ध्यान में रखनी आवश्यक हैं –
- आप कितने लॉट में ट्रेड करना चाहते हैं।
- आप कौनसी एक्सपायरी के लिए ट्रेड करना चाहते हैं।
- जोखिम लेने की क्षमता।
- मार्केट में Volatility की क्या स्थिति है।
कॉल ऑप्शन तब अधिक फायदेमंद होता हैं जब आपको लगता हैं की एक्सपायरी डेट से पहले स्टॉक या एसेट की कीमत बढ़ने वाली हैं।
चलिए इसे एक उदाहरण से समझते हैं-
मान लीजिये कि आपने XYZ कंपनी के 100 शेयरों के लिए ₹50 प्रति शेयर पर कॉल ऑप्शन ख़रीदा हैं। ऑप्शंस की एक्सपायरी डेट से पहले, शेयर की कीमत बढकर ₹70 प्रति शेयर हो जाती है। इसमें यदि आप अपने ऑप्शन का प्रयोग करना चुनते हैं, तब भी आप 100 शेयरों को ₹70 प्रति शेयर की उच्च कीमत पर बेच सकते हैं।
पुट ऑप्शन ट्रेड कैसे करें?
जब आप एक पुट ऑप्शन (Put Option) खरीदते हैं, तो आप एक कॉन्ट्रेक्ट खरीद रहे होते हैं जो आपको एक निश्चित मूल्य पर एक निश्चित एक्सपायरी डेट तक शेयर या सिक्योरिटी को बेचने का विकल्प देता हैं। पुट ऑप्शन के लिए आपको सभी उन बातों का ध्यान रखना हैं जो की हमें कॉल ऑप्शन में रखनी होती हैं।
पुट ऑप्शन तब ख़रीदना फायदेमंद होता हैं जब आपको लगता है कि किसी स्टॉक या सिक्योरिटी की कीमत एक्सपायरी डेट से पहले नीचे जा सकती है। यदि आप एक स्ट्राइक प्राइस पर पुट ऑप्शन को खरीदते हैं तो जैसे–जैसे उस शेयर या एसेट की कीमत नीचे जाती है आपको ।
उदाहरण के लिए मान लीजिये की आप ABC कंपनी के 100 शेयरों के लिए ₹50 प्रति शेयर पर पुट ऑप्शन खरीदते हैं। वही ऑप्शंस की एक्सपायरी डेट से पहले, स्टॉक की कीमत गिरकर ₹25 प्रति शेयर हो जाती है। यदि आप अपने ऑप्शन का प्रयोग करना चुनते हैं, तब भी आप स्टॉक के 100 शेयरों को ₹50 प्रति शेयर की उच्च कीमत पर बेचने का अधिकार रखते है।
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निष्कर्ष
स्टॉक मार्केट में प्रॉफिट कमाने के लिए ट्रेडिंग बहुत अच्छा तरीका माना जाता है। लेकिन जितना अच्छा ये तरीका है उतना ही इसमें रिस्क भी होती है। इसलिए आपको बिना ऑप्शन ट्रेडिंग सीखें और इसकी सही तैयारी करें बिना ट्रेडिंग में कूदना नहीं चाहिए।
आप पहले इसे सीखें, इसके बारे में पढ़ें, ऑप्शन ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान के बारे में जाने तभी आपको ऑप्शन ट्रेडिंग करनी चाहिए। नहीं तो, आपको बहुत अधिक नुकसान भी हो सकता है। जिसके बाद में हो सकता है कि आप सबको कहते फिरे की स्टॉक मार्केट सट्टा बाजार है जहां पर बस नुकसान ही होता है। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है।
इसलिए आप पहले पहचान करें कि क्या आपको इन्वेस्टिंग करनी है या ट्रेडिंग। उसके बाद ही आप अपना निर्णय लें। तो दोस्तों, उम्मीद करता हूं कि ऑप्शन ट्रेडिंग की ये जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। इस आर्टिकल में आपने जाना की ऑप्शन ट्रेडिंग क्या होती है (Option Trading in Hindi), कॉल ऑप्शन क्या होता है, पुट ऑप्शन क्या होता है।
अगर ये जानकारी आपको अच्छी लगी हो तो इसे सोशल मीडिया नेटवर्क्स पर जरूर शेयर करें और यदि आपके कोई सवाल या सुझाव है तो आप मुझे कमेंट बॉक्स के माध्यम से बता सकते हैं।
FAQ
ऑप्शन ट्रेडिंग कैसे होता है?
ऑप्शन ट्रेडिंग में बिना शेयर्स का पूरा पैसा दिए बस प्रीमियम के आधार पर ट्रेडिंग करने का मौका होता हैं। ऑप्शंस एक कॉन्ट्रेक्ट होता है जो की एक Underlying Asset से जुड़ा हुआ होता है जैसे की स्टॉक या इंडेक्स।
ऑप्शन ट्रेडिंग में कितना चार्ज लगता है?
इसमें चार्ज अलग-अलग होता हैं। वसूली जाने वाली ब्रोकरेज ब्रोकर टू ब्रोकर निर्भर करती हैं।
ऑप्शन में एक लॉट में कितने शेयर होते है?
लॉट की साइज प्रत्येक एसेट या शेयर के लिए अलग-अलग होती हैं। ये लॉट साइज एक्सचेंज के द्वारा तय की जाती हैं।
कॉल और पुट का क्या मतलब होता है?
कॉल ऑप्शन आपको विक्रेता से एक निर्धारित तिथि पर पहले से तय किये गए दाम पर शेयर्स को खरीदने का अधिकार देता है। जबकि पुट ऑप्शन में आपको तय तारीख पर विक्रेता से पहले से तय कीमत पर शेयर/इंडेक्स को बेचने का हक प्राप्त होता है।
फ्यूचर्स और ऑप्शन ट्रेडिंग में क्या अंतर है?
फ्यूचर्स एक अनिवार्य कॉन्ट्रेक्ट होता हैं जो आपको पूर्व-निर्धारित प्राइस पर भविष्य की तारीख में स्टॉक या इंडेक्स खरीदने या बेचने के लिए ‘बाध्य’ (mandatory) करते हैं। जबकि ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट पूर्व–निर्धारित तिथि पर agreed price पर अंतर्निहित स्टॉक या इंडेक्स को खरीदने या बेचने का विकल्प (not mandatory) देता है।